यहां पाकिस्तानी रीति-रिवाज से मनाया जाता है दशहरा, 'हनुमानजी' पहनते हैं सात फीट ऊंचा मुखौटा


रायसेन। यूं तो पूरे देश में दशहरा मनाने के अनेक परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के रायसेन जिला मुख्यालय और इसी जिले की अबदुल्लागंज तहसील में पाकिस्तान में हिंदुओं द्वारा दशहरा पर्व मनाने की परंपरा के अनुसार ही ये पर्व मनाया जाता है।





1947 में भारत के विभाजन से पहले पाकिस्तान के मुलतान प्रांत में दशहरा धूमधाम से और एक अलग ही तरह से मनाया जाता था। आज पाकिस्तान के मुलतान के हालात ऐसे नहीं हैं। अब वहां सिंधी और हिंदू तो हैं पर त्योहार मनाने की पूरी आजादी नहीं है।



विभाजन के बाद पाकिस्तान के मुलतान से भारत आए कुछ लोग मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बस गए। उन्होंने यहां दशहरा की परंपरा को करीब छह दशक पहले उन्हीं रीति-रिवाजों से शुरू की जैसी वे पाकिस्तान में मनाया करते थे। शुरुआती चार-पांच दशक तक ये परंपरा पाकिस्तानी लोगों द्वारा निभाई गई। धीरे-धीरे इस परंपरा को स्थानीय लोग निभाने लगे। अब ये परंपरा पूरी तरह स्थानीय हो गई है। 


 
सात फीट ऊंचा 50 किलो का मुखौटा
पाकिस्तान की इस परंपरा में हनुमान बने युवक को सात फीट ऊंचा 50 किलो का मुखौटा पहनाया जाता है। करीब चालीस दिन पहले युवक का चयन करते हैं। उस युवक से इस दौरान हनुमानजी की साधना कराई जाती है। युवक इस दौरान सिर्फ दूध का सेवन करता है। दशहरा के दिन उसे विधि-विधान से पांच लोग मुखौटा पहनाते हैं। यह वही लोग होते हैं जो चालीस दिन की साधना के दिन उसकी देखभाल करते हैं। खास बात है कि महावीर बनने वाले को 40 दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। यही नहीं, 40 दिन तक जमीन पर सोने के साथ ही उसे हर दिन शरीर पर मुलतानी मिट्टी का लेप करवाना जरूरी माना जाता है।


 
दशहरा चल समारोह में चलते हैं सबसे आगे 
रायसेन में हिंदू उत्सव समिति द्वारा चल समारोह निकाला जाता है तो उसमें सबसे आगे मुखौटा धारण किए हुए हनुमानजी चलते हैं। इस दौरान उनकी सुध-बुध ही अलग तरह की होती है। शाम पांच बजे से शुरू हुआ दशहरा उत्सव रात 12 बजे तक चलता है। 50 किलो का मुखौटा पहन हनुमानजी रावण से करीब एक घंटा युद्ध करते हैं। उनका श्रृंगार चमेली के तेल और भगवान श्री हनुमान जी पर चढ़ाए जाने वाले सिंदूर से किया जाता है। पैरों में घुंघरु बांध दिए जाते हैं। नंगे पैर ही शोभायात्रा का कई किलोमीटर सफर तय करना होता है। 


 
दो बार पहनते हैं मुखौटा
दशहरा के दिन हनुमानजी जब नगर भ्रमण करते हैं तो उनके साथ चलने वाले लोग जय रघुवीर जय महावीर का जयघोष करते हैं। रायसेन में इस तरह का कार्यक्रम साल में दो बार होता है। पहला दशहरा पर्व के अवसर पर दूसरा दिसंबर माह में आयोजित होने वाले रामलीला उत्सव के दौरान।